नरेश भारद्वाज
अगर मदद करनी ही थी, तो कैमरा क्यों बुलाया?” वहीं, समर्थकों का कहना है कि “नेताजी की हर पहल को नकारात्मक नजर से देखना ठीक नहीं। वह जो कर रहे हैं, कम से कम कर तो रहे हैं।”
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, आने वाले चुनावों को देखते हुए ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रम आम बात हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर इस तरह की ‘ब्रांडिंग’ से जनता की असली भावना का पता चलता है।
कैंट से टिकट के दावेदार 500-500 के नोट बांटते फोटो अपलोड कर रहे हैं। नेता जी पंजाब के एक विेभाग के चेयरमैन है, नाम है मंगल सिंह बासी। क्या 500 रुपये देकर फोटो मीडिया पर फोटो डालना गरीबों को सोशल मीडिया पर प्रचार करना उचित है ?
वहीं जालंधर केंद्रीय सीट से भी हलका इंचार्ज नितिन कोहली की बात सुन लीजिए- पांच किलो आटे की थेली और क्लिक क्लिक क्लिक…
गरीबों को आटा दाल मिली या नहीं, ये नहीं पता – लेकिन कैमरे को जरूर अच्छी रेज़ोल्यूशन वाली तस्वीरें मिल गईं। यह कहते आम लोग घूम रहे हैं।
“अगर मदद को प्रचार बनाना है, तो क्या वो सेवा रह जाती है?”
खैर मामला चर्चा का विष्य बना हुआ है…क्या 150 रुपये का आटा एक गरीब व गिरे मकान के लिए पर्याप्त है ??
नेता जी कहते हैं कि
आजकल सोशल मीडिया एक ज़रूरी माध्यम है, और अगर इससे लोगों को प्रेरणा मिलती है, तो गलत क्या है?”
नेताजी की इस पहल में सेवा थी, प्रचार भी था – अब जनता तय करे कि असली मदद कौन कर रहा है: जो चुपचाप कर रहा है, या जो कैमरे के साथ?
एक ही बात है…
चुनाव सिर पर हैं भाई…