विनय पाल जैद की कलम से…
पंजाब की राजनीति में धर्म हमेशा से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता आया है। पंजाब में कभी किसी पार्टी ने धार्मिक विवाद को हवा नहीं दी”, लेकिन ताजा ऐतिहासिक घटना और जमीनी सच्चाई को देखें तो यह दावा पूरी तरह तथ्यों पर खरा नहीं उतरता। भाजपा ने जालंधर में धार्मिक विवाद को जिस ढंग से हवा दी है उससे राजनीतिक विश्लेषकों में यह बात चल रही है कि भाजपा को फायदा रहा या नुकसान?
जिस ढंग से योगेश मैनी ने मंत्री भगत की कोठी जाकर आयूब खान से जफ्फी डाली है उससे भाजपा को जमीनी स्तर पर नुकसान हुआ है। अगर राजीनामा करना था तो पंजाब में तीन दिन तक माहौल क्यों खराब किया गया ? क्या यह पंजाब के हिंदुओं को संगठित करने के लिए था ? लेकिन जालंधर की आबादी 12 लाख होने के बावजूद भाजपा के नेताजी मे जिस धरने पर शमूलियत की वहां पर गिनती 500 से अधिक नहीं थी हालाँकि इसमें संत समाज व हिदु जत्थेबंदियों ने भूमिका अदा की, फिर बात यह है क्या भाजपा को जमीनी पर स्तर पर इस मुद्दे पर आवाम का समर्थन नहीं मिला है।
भाजपा नेता जोर जोर से कहते रहे कि जयश्री राम बोलना क्या गुनाह है ? मीडिया में खबरे चली कि पंजाब में जयश्री राम बोलने नहीं दिया जा रहा ?
लेकिन जमीनी स्तर पर आवाम ने साथ नही दिया। जालंधर की आवाम ने भाईचारे को पहल दी। भाजपा जरूर पंजाब में हिंदुओं के दिल में उतरने की कोशिश कर रही हो लेकिन भाजपा को यह समझ आनी चाहिए कि पंजाब में हिंदु कभी कांग्रेस कभी आप तो कभी भाजपा का साथ देता रहा है और वोट को समझकर डालता है।
2022 में हिंदुओं ने आप को वोट भी दिया है जिसमें लुधियाना शहरी अमृतसर शहरी और जालंधर में दो सीट पर जीत इसका उदाहरण है लेकिन क्या भाजपा शहरी हिंदूओ को संगठित करने की कोशिश कर रही है ? लेकिन जालंधर की आवाम ने जिस तरह से जमीन पर इस धार्मिक विवाद को हवा नहीं दी उससे साफ जाहिर है कि यूपी बिहार का फार्मूला पंजाब में नहीं चलेगा। साफ कहूं तो यह भाजपा के लिए उलटा खतरे की घंटी है..॥