2 अगस्त 2025:
विधायक एवं अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव पद्मश्री परगट सिंह ने भारतीय जनता पार्टी की केंद्र सरकार पर राष्ट्रीय चुनाव आयोग का दुरुपयोग करके वोटरों के नाम काटने जैसे गंभीर विषय पर चिंता जताई है।
उन्होंने कहा कि अगर भाजपा को इस तरह के हथकंडे अपनाने से रोका नहीं गया तो लोगों का चुनाव आयोग से विश्वास उठ जाएगा। पहले महाराष्ट्रा और अब बिहार में लाखों वोट में हेराफेरी लोकतंत्र के खतरे का संकेत है।
अगला निशाना पंजाब हो सकता है, यहां भी भाजपा सरकार में आने के लिए वोटर लिस्टों के साथ खिलवाड़ कर सकती है। यह पंजाब के वोटरों के साथ होने से रोकना होगा। उन्होंने कहा कि पंजाब के वोटरों को भाजपा जैसी लोकतंत्र और संविधान से खिलवाड़ करने वाली पार्टी से बचना चाहिए।
जिसके लिए कांग्रेस पार्टी इसे चुनाव आयोग से लेकर संसद और आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय तक हर मंच पर उठाएगी। क्योंकि यह कोई मामूली प्रशासनिक चूक नहीं है। यह लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे पर हमला है।
बिहार में 65 लाख से अधिक वोटरों की सूची से कटौती बेहद गंभीर
उन्होंने कहा कि बिहार में हुए विशेष पुनरीक्षण के दौरान 65 लाख से अधिक वोटरों के नाम हटाए जाने पर बेहद गंभीर है। मतदाता संख्या 7.9 करोड़ से घटकर 7.24 करोड़ होना न केवल असामान्य है, बल्कि यह आगामी चुनावों की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। अगर इतने बड़े पैमाने पर मतदाताओं को बिना पारदर्शिता के सूची से बाहर किया गया है, तो यह चुनावी प्रक्रिया की वैधता पर गहरा संदेह पैदा करता है।
सबसे ज्यादा कटौती पटना (3.95 लाख), मधुबनी, पूर्वी चंपारण और गोपालगंज जिलों में दर्ज की गई है। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि कुछ क्षेत्रों को असमान रूप से प्रभावित किया गया है, जिसकी तत्काल जांच आवश्यक है।
कांग्रेस का रुख: लोकतंत्र से समझौता नहीं होगा
परगट सिंह ने कहा यह मुद्दा राजनीति का नहीं, बल्कि जनता के संवैधानिक अधिकारों का है, हर नागरिक को मतदान का अधिकार है और उसे चुपचाप छीना नहीं जा सकता।
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राहुल गांधी की चेतावनी को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता
परगट सिंह ने कहा कि राहुल गांधी बार-बार चेताते रहे हैं कि भारत में लोकतंत्र को व्यवस्थित रूप से कमज़ोर किया जा रहा है। अगर करोड़ों लोगों के वोट बिना जांचे-परखे काटे जा सकते हैं, तो यह लोकतांत्रिक चुनाव का मज़ाक है।
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क्या यह जानबूझकर किया गया राजनीतिक बहिष्कार है?
परगट सिंह ने सवाल उठाया कि एनडीए सरकार और बिहार के मुख्यमंत्री इस मुद्दे पर चुप क्यों हैं? अगर ये मामला किसी कांग्रेस शासित राज्य में होता, तो भाजपा अब तक इस्तीफे मांग चुकी होती। क्या यह महज़ प्रशासनिक प्रक्रिया है या फिर राजनीतिक रूप से प्रेरित बहिष्करण है?
कांग्रेस की प्रमुख मांगें:
1. एक स्वतंत्र और समयबद्ध जांच कराई जाए कि किन आधारों पर 65 लाख नाम हटाए गए।
2. चुनाव आयोग स्पष्ट करे कि यह पुनरीक्षण किन मापदंडों पर किया गया।
3. जनसमर्थन और पारदर्शिता के साथ प्रक्रिया दोबारा खोली जाए, ताकि वंचित मतदाताओं को फिर से शामिल किया जा सके।
4. सीमावर्ती और पिछड़े क्षेत्रों, विशेषकर सीमांचल जैसे जिलों में, मतदाता सूची की निष्पक्षता की अतिरिक्त समीक्षा कराई जाए।
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